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कुछ

‘कुछ’ लोगों को लगता है कि हमें ‘कुछ’ हो गया है ‘कुछ’ लोग हमें शक की निगाहों से देखने लगे है मैं गर सोचूँ कि बोलूँ ‘कुछ’ नहीं है और गर है तो सोचूँ कि ये ‘कुछ’ क्या बला है? कई सालों पहले सुना था गाना कि ‘कुछ’ कुछ होता है आज समझ आता है कि ये ‘कुछ’ क्या होता है || ‘कुछ’ तो है जो ये दुनियाँ खूबसूरत लगती है ‘कुछ’ तो है जो ये फिजायें रंगीन लगती है ‘कुछ’ तो है जो खुद को भूल जाने को जी करता है और ‘कुछ’ तो है जो तुझमे डूब जाने को जी करता है || ‘कुछ’ तो है जो तेरे जाने की खबर रहती है मुझे ‘कुछ’ तो है जो तेरे आने की फिकर रहती है मुझे तू लाख मुझे चिड़ा ले कि मुझे फर्क नहीं पढता पर ये तो तू भी जानती है कि ‘कुछ’ न ‘कुछ’ तो ज़रूर है तेरे मेरे बीच में || सोचा था इस ‘कुछ’ के बारे में ‘कुछ’ न ‘कुछ’ तो ज़रूर लिखूँगा पर अब लगता है लिखते ही चले जाओ अहसास ख़त्म नहीं होगा कहने को तो बहुत है सोचता  हूँ लिखूँ तो क्या लिखूँ बस इतना कह सकता हूँ जो ‘कुछ’ भी है खूबसूरत है || उम्मीद है इस ‘कुछ’ के जरिये ‘कुछ’ तो ज़रूर सोचेगी तू मेरे बारे में.....