इज़हार

तुझे खोने के डर से आज मैं इज़हार कर बैठा
क्या पता था बर्बादियों की तरफ कदम बड़ा बैठा

उम्मीद थी तेरी भी रज़ा ही होगी
पर जाने क्यूँ मैं ये नापाक भूल कर बैठा

कल तक जो दुनियाँ खुशियों से रंगीन थी
आज मैं ही दखो इसको वीरान कर बैठा

मुझे लगता था हम नयी शुरुआत करेंगे
पर आज मैं ही इस ख्वाब का क़त्ल कर बैठा

विनाशकाले विपरीत बुद्धि, सुना था बुजुर्गों से
पर आज देखो मैं भी इस पर अमल कर बैठा....

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