पहले आप, पहले आप
My view on Delhi Post Election Scenario-2013
हमारे संविधान के अनुसार चुनाव होते है, जिसमे जनता अपनी
बुद्धि, समझ और प्रत्याशी के अनुभव और घोषणा पत्र के आधार पर वोट देती है. अभी भी
ऐसा हुआ है, तो दिल्ली में ऐसा क्या हुआ है जिसके बारे में इतनी चर्चा हो रही है.
वो ये की, बजाये जोड़ तोड़ के सरकार बनाने के हर कोइ चाहे वो भाजपा से श्री राजनाथ
सिंह जी हो, श्री नितनी गडकरी जी हो या आम आदमी पार्टी के श्री अरविन्द केजरीवाल
जी व् श्री मनीष सिसोदिया ही क्यूँ न हो.
आम आदमी पार्टी की एक बात की तो तारीफ करनी ही चाहिए कि वो
अभी भी अपनी बात पे अडिग है कि न तो वे किसी का समर्थन लेंगे, न ही किसी पार्टी को
अपना समर्थन देंगे. इसी के चलते भाजपा भी शायद एक अच्छी छवि बनाने के चलते शायद ये
कह रही है, कि हम विपक्ष में बैठने के लिए तैयार है. ऐसे में सरकार किसकी बनेगी या
नहीं बनेगी, नहीं बनेगी तो क्या राष्ट्रपति शासन लागू होगा? गर राष्ट्रपति शासन लागू
हुआ तो अगले चुनाव कब होंगे और इस चुनाव का परिणाम क्या होगा, ये काफी हद तक
निर्भर करता है कि ये चुनाव कब होंगे? इस चुनाव में जीत किसकी होगी, बहुत बड़ा असर
इसके समय से पड़ेगा. खैर ये सब बातें आप समाचार चेनलो से भी प्राप्त कर सकते है.
इसी सब विचारों के चलते आपके समक्ष कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत है-
पूँछ किसी की पकड़ी और साथ किसी का छोड़ा,
राजनीति के प्ररिप्रेक्ष्य में ये किस्सा बहुत ही आम था |
सारे आदर्श धरे रह जाते बस एक ही बात ज़हन में रहती,
कुछ मिले न मिले हमको, बस कुर्सी अपनी ही होनी |
किन्तु परन्तु कुछ न कुछ अकल्पनीय तो इस बार अवश्य हुआ है
क्यूंकि कल तक जो सीट के लिए मरा करते थे, वो ही आज “पहले
आप, पहले “आप” न कहते” ||
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